फिलिस्तीन पर ध्रुवीकरण : मोदी के भारत में तीसरी दुनिया की एकता के खिलाफ हिन्दुत्ववादी जियानवादी गठजोड़
ऐसे समय में जबकि भारत की उत्तर साम्राज्यवादी देशों की वैश्विक एकजुटता नीति को छोड़ कर मोदी इसराइल के साथी बन रहे हैं - जिसने फिलिस्तीनी मजदूरों को हटा 100000 भारतीय मजदूरों को वहाँ भेजने के लिए कहा है - भारत का कामगार तबका और छात्र आन्दोलन फिलिस्तीन के प्रति अपना समर्थन दोहराते हैं |
यह लेख मूल रूप से 27 नवंबर, 2023 को प्रकाशित हुआ था | हिंदी में अनुवाद हिमांशु कुमार द्वारा |
जिस समय आप यह लेख पढ़ रहे होंगे, उसी समय 21 साल के मजदूर मनोज, (बदला हुआ नाम ) की लाश भारत के पिछड़े हुए राज्य बिहार के एक गाँव में उसके घर पहुँची होगी | एक प्रवासी मजदूर मनोज उन मजदूरों में शामिल था जो गुजरात के सूरत रेलवे स्टेशन पर भारी भीड़ की वजह से मची भगदड़ में कुचले जाने के कारण मारे गए | ट्रेनों की कमी, किराए की बार बार बदलने वाली दरें, और हर तरफ रेलवे ट्रैक के निजीकरण ने मिलकर ऐसे हालात पैदा कर दिए हैं जिसमें लम्बी दूरी की यात्रा की मांग उपलब्ध सीटों की संख्या से पार हो गयी है | त्यौहारों के मौसम में सूरत जैसे रेलवे स्टेशन युद्ध के मैदान में तब्दील हो जाते हैं, वहाँ चारों तरफ फ़ैली घबराहट, अव्यवस्था, और हताशा अक्सर इस तरह की घटनाओं की वजह बन जाती है | सूरत जैसे महानगर ग्रामीण इलाकों से प्रवास कर पहुँचने वाले मजदूरों का प्रमुख गंतव्य होते हैं | इनमें से कुछ मजदूर किसी ख़ास मौसम में काम पाने के लिए पलायन करते हैं जबकि दुसरे कुछ मजदूर लम्बी अवधि के लिए अपनी आजीविका की तलाश में यहाँ आते हैं | यह लोग असंगत रूप से अनौपचारिक क्षेत्र के धंधों में, जैसे भवन निर्माण रिक्शा चलाना तथा बड़ी संख्या में महिलाएं घरेलू सहायिका के रूप में, काम में लग जाते हैं | इनकी मेहनत दुनिया की पूँजी का ईंधन बनता है - यह सस्ते हैं, इन्हें आसानी से नौकरी से निकाला जा सकता है, और इनकी जाति के आधार पर इनके साथ सुलूक किया जा सकता है | दुःख की बात है कि इनकी ज़िन्दगी की कीमत को अक्सर कम करके आंका जाता है, यह भगदड़ में कुचल कर उसका शिकार बन सकते हैं, या इनके विरोध को नज़रंदाज़ करके इन्हें परिणाम की जानकारी दिए बिना खतरनाक युद्ध क्षेत्र में भेजा जा सकता है|
किसी को कोई अचम्भा नहीं हुआ जब इज़राइली भवन निर्माण एसोसियेशन के उपाध्यक्ष की भारत से एक लाख मजदूर भेजने के लिए की गई प्रार्थना को भारत सरकार की तरफ से इनकार नहीं किया गया | इन भारतीय मजदूरों को उन फिलिस्तीनी मजदूरों की जगह रखा जाएगा जिन्हें वहाँ से निकाल दिया गया है | भारतीय और इज़राइली आभिजात्य वर्ग नस्लभेद और जातिगत पूर्वाग्रह का शिकार मजदूरों को जानवरों जैसा और इंसानों से कमतर सामान समझते हैं जिन्हें बदला जा सकता है, विस्थापित किया जा सकता है, और शोषण का शिकार बनाया जा सकता है | मोदी शासन में भारत ने मजदूरों के लिए बनाये कानूनों में फेरबदल किया है और उनमें मजदूरों के लिए मौजूद महत्वपूर्ण प्रावधानों जैसे सामाजिक सुरक्षा, मातृत्व अवकाश, न्यूनतम मजदूरी गारंटी को मजदूरों से छीन लिया है | हांलाकि भारत के विदेश मंत्रालय ने इस बात से इनकार किया है कि गाज़ा की घेरेबंदी के बाद इज़राइल से ऐसी कोई मांग प्राप्त हुई है, अलबत्ता वे यह ज़रूर कबूल करते हैं कि उन्होंने पूर्व में इज़राइल सरकार से वादे किये हैं | मसलन 9 मई को एक समझौते पर भारत और इसराइल द्वारा हस्ताक्षर किये गए जो इज़राइल के विशेष श्रम बाज़ारों में भारतीय मजदूरों को रोज़गार प्रदान करने को सुगम बनाने विषयक रूपरेखा समझौता है, इस समझौते में 34000 मजदूरों को भवन निर्माण क्षेत्र में और 8000 कामगारों को देखभाल क्षेत्र में काम देने की मंशा व्यक्त की गई है |
जबकि भारत तेल अवीव से अपने नौकरशाहों और मशहूर नागरिकों को बचा कर निकाल कर ला रहा है, तब सवाल उठता है कि तब भारत हजारों मजदूरों को,अपने खुद के देश के नागरिकों को युद्ध क्षेत्र में भेजने के इस विचार को ठुकरा क्यों नहीं देता ? चार प्रमुख फिलिस्तीनी मजदूर यूनियनों द्वारा अपने भारतीय सहयोगियों से ऐसे समझौते को ठुकराने की अपील के बाद भारत की चार केन्द्रीय मजदूर यूनियनों ने तत्काल एक संयुक्त बयान जारी किया जिसमें उन्होंने ना सिर्फ सरकार से मांग की है बल्कि कामगारों से भी कहा है कि वे हाल में चल रहे इज़राइली अत्याचारों के साथी ना बनें | भारतीय भवन निर्माण कामगार फेडरेशन ने इसका विरोध करते हुए प्रस्ताव पारित किया जिसमें कहा गया है कि हम भारतीय कामगारों को इस संकट के समय में इज़राइल भेजे जाने के किसी भी कदम का खुला विरोध करते हैं | इसी के साथ मजदूर यूनियनों के वैश्विक फेडरेशन ने 14 अक्तूबर को भारत की छह केन्द्रीय ट्रेड यूनियनों के साथ मिलकर राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली के मध्य में स्थित जंतर मंतर पर एक विरोध प्रदर्शन का आयोजन किया | अपने पर्चे में इसका उल्लेख करते हुए कहा गया कि “इस विरोध प्रदर्शन का उद्देश्य इज़राइली राज्य द्वारा किये जा रहे घोर अमानवीय तथा क्रूर कब्ज़े के विरोध में और आम तौर पर समस्त फिलिस्तीनी जनता का तथा विशेष तौर पर गाज़ा के लोगों के लोगों के प्रति अपनी एकजुटता जाहिर करना है |”
उत्तर सत्य काल के भारत में हिंदुत्व और ज़ायोनिस्ट गठबंधन
भारत के दक्षिणपंथी समूह ने फिलिस्तीन में चल रहे जनसंहार के दौरान सोशल मीडिया पर सफलता पूर्वक बड़े पैमाने पर लोगों का ध्यान अपनी और खींच लिया | सोशल मीडिया प्लेटफार्म X, जिसका पुराना नाम ट्विटर है, उस पर “#भारत इजराइल के साथ है” ट्रेंड करने लगा | इसी के साथ साथ ट्रोल गिरोह द्वारा दूर बैठ कर फिलिस्तीन का समर्थन करने वाले लोगों के साथ गाली गलौज की गई और बेशर्मी के साथ इज़राइल की ज़ायोनिस्ट सरकार के साथ अपनी एकता व्यक्त की गई | फर्जी विडिओ विकृत चित्रों पुरानी खबरों के मार्फ़त इज़राइल को असली पीड़ित साबित करने की कोशिश करी गई और भारत झूठी खबरों का केंद्र बन गया | यहाँ तक कि भारत के कुछ शहरों में जुलूस निकाले गए जिसमें इज़राइल जिंदाबाद के साथ साथ हिंदुत्व का नारा जय श्री राम और राष्ट्रवादी नारा जय हिन्द लगाए गये | भारत की दक्षिणपंथी कारपोरेट मीडिया जिसे गोदी मीडिया भी कहा जाता है, ने भी इस मौके को लपक लिया और इस्लामोफोबिक सामग्री का प्रदर्शन किया और मुसलमानों का संबंध आतंकवाद जिहाद और हमास से जोड़ कर दिखाया |
हिंदुत्व और ज़ायोनिज़्म के बीच इस आत्मीयता की वजह क्या है ? हांलाकि हिंदुत्व विचार के शुरुआती विचारक जैसे एम एस गोलवरकर ने नाजियों और उनके गर्व की प्रशंसा की थी इन्होनें ज़ायोनिज़्म को भी अपना अभीष्ट माना |, ज़ायोनिस्ट आदर्श वृहद इज़राइल हिन्दु राष्ट्रवादियों के अखंड भारत से अलग नहीं है | हिन्दुत्ववादियों और ज़ायोनिस्ट दोनों ने ही मुसलमानों को हमलावर या बाहरी माना और ऐसे समूह के रूप में देखा जिन्हें बाहर खदेड़ा जाना है | नस्ली सफाया दोनों ही विचारधाराओं का अभिन्न अंग है | यह सभी जानते हैं की हिंदुत्व विचारधारा इस्लामोफोबिया की विचारधारा के आधार पर खड़ी की गई है | 1999 में हुआ कारगिल युद्ध जिसमें भारत ने इज़राइल से हथियार खरीदे (हांलाकि ऐसा 1971 में भी किया गया था ), तथा बाबरी मस्जिद का ढहाया जाना ऐसी दो घटनाएँ थीं जिसके द्वारा मुसलमानों की छवि खलनायक की तथा अमानवीय गैर लोगों के रूप में और भी ज्यादा मजबूती से बनाई गई | हिंदुत्व विचारधारा के विचारक येरुशलम और अयोध्या ( वह स्थान जहां के बारे में कहा जा रहा है कि वह राम की जन्म भूमि है ) के बीच समानता भी दर्शाते हैं, वे मानते हैं कि यह दोनों ही पवित्र तीर्थ हैं जिसे हमलावर मुसलमानों ने चुरा लिया और अपवित्र कर दिया | हिन्दू राष्ट्रवादी लोग इजराइल के लिए जिस तरह का समर्थन दिखाते हैं उसमें उनकी इज़राइल की तरह भारत में भी मुसलमानों के जनसंहार की आकांशा की झलक दिखाई देती है |
प्रवासी हिंदु दुनिया भर में हिंदुत्व के एजेंडे को फैलाने में महत्वपूर्ण भूमिका अदा करते हैं | जुलाई 2003 में अमेरिकन यहुदियों की समिति (AJC), अमेरिकन इज़राइल राजनैतिक कार्यवाही समिति तथा भारतीय अमेरिकन राजनैतिक कार्यवाही समिति (USINAPAC) ने अपने उदघाटन सम्बोधन सामूहिक तौर पर किये | USINPAC तथा हिन्दु अमेरिकन फाउंडेशन को भारी पैमाने पर AJC और AIPAC से मदद और बढ़ावा मिला है | उसी वर्ष तत्कालीन राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार ब्रजेश मिश्रा ने आतंकवाद का सामना करने के लिए भारत और इज़राइल “दोनों लोकतन्त्रों के अडिग गठबंधन” की ज़रुरत पर जोर दिया | 2014 में अल्पेश शाह जो हेज फंड मेनेजर और मोदी समर्थक एशियन वोइस अखबार में कॉलम लिखते हैं, ने नवनिर्वाचित मोदी को एक खुला पत्र लिखा जिसमें उनसे प्रार्थना करी गई कि मोदी हिन्दुओं के साथ दुनिया भर में होने वाले बर्ताव पर ध्यान दें | उसने इस बात की भी वकालत करी कि भारत को हिन्दू हितों का वैसे ही संरक्षण करना चाहिए जैसे इज़राइल यहूदियों का करता है | मोदी का नागरिकता संशोधन अधिनियम (2019), जो मुस्लिम बहुसंख्या वाले देशों में रहने वाले गैर मुस्लिम नागरिकों को भारतीय नागरिकता का प्रस्ताव देता है, यह भारतीय कानून इज़राइल के लॉ ऑफ रिटर्न से मिलता जुलता है जो दुनिया भर में फैले यहूदियों को इजराइली नागरिकता का प्रताव देता है |
दोनों धार्मिक और नस्लीय भेदभाव वाले कानूनों का उद्देश्य जनसंख्या के संतुलन को बदलना है जिसके लिए एक समुदाय को दुसरे समुदाय के मुकाबले ज़्यादा तरजीह दी जाती है – पहले मामले में गैर मुसलमानों को मुसलमानों के मुकाबले और दुसरे मामले में यहूदियों को फिलिस्तीनियों के मुकाबले ज्यादा तरजीह दी जाती है |
भारत ने 1990 के उदारीकरण की नीतियाँ लागू करने के साथ साथ इज़राइल के साथ नर्म कूटनीति शुरू करी | लेकिन दोनों देशों के बीच सन 2010 के मध्य तक खुले तौर पर बहुत दोस्ताना नहीं रहे | 1990 के दशक में जबकि केंद्र में भारतीय जनता पार्टी की ज्यादा “धर्मनिरपेक्ष” सरकार सत्ता में थी, खुले तौर पर फिलिस्तीन विरोधी साथ साथ मुस्लिम विरोधी रुख अख्तियार करना अव्यवहारिक था | लेकिन 2014 में राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ समर्थित भारतीय जनता पार्टी सरकार बनने के बाद यह सब बदल गया | इस सरकार पर मुसलमानों को खुश रखने का कम दबाव था बल्कि वास्तव में यह उनके प्रति खुलेआम दुश्मनी का भाव रखती थी | इसी के साथ साथ भारत सरकार का इज़राइल के प्रति रवैय्या बदल गया | पहले जहां यह अधिक संतुलित था, अब वह पूरी तरह इज़राइल के खुले समर्थन में बदल गया | यह समर्थन शुरू में आतंकवाद विरोध के नाम पर किया गया लेकिन बाद में जनसंहारों को अनदेखा करने तक जा पहुंचा | 2017 में मोदी पहले ऐसे भारतीय प्रधान मंत्री बने जिसने इज़राइल का दौरा किया, इसके जवाब में नेतनयाहू ने दिल्ली का दौरा किया | अक्तूबर में हमास के हमले के बाद इज़राइल के साथ सबसे पहले एकता प्रगट करने वाले देशों में मोदी भी शामिल थे | इसके अलावा भारत लम्बे समय से चली आ रही अपनी प्रतिबद्धता के विरुद्ध जा कर गाज़ा में मानवता के आधार पर युद्ध विराम लागू करने के 27 अक्तूबर के संयुक्त राष्ट्र संघ के प्रस्ताव पर अनुपस्थित रहा |
लेकिन हिंदुत्व और ज़ायोनिज्म के बीच रिश्तों के आर्थिक तर्क भी हैं | सोवियत संघ के विघटन के बाद भारत ने अमेरिका के खेमे से नजदीकियां बढाने के मक़सद से इज़राइल से अपने नज़दीकी आर्थिक रिश्ते बनाये | हथियार उद्योग इज़राइली अर्थव्यवस्था की रीढ़ है, 1990 के दशक से ही भारत इज़राइली रक्षा उत्पादों का सबसे बड़ा खरीददार बन कर उभरा है | सन 2000 ने इज़राइली विमान निर्माता उद्योग से बराक 1 खरीदने का समझौता किया | बाद में भारत की केन्द्रीय जांच एजेंसी ने इस सौदे में हुए भ्रष्टाचार के आरोपों की जांच करी जिसमें तत्कालीन रक्षा मंत्री जार्ज फर्नांडीस तथा अनेकों अफसरों पर घूस लेने के आरोप थे | इसके बावजूद भारत ने इज़राइली विमान उद्योग से अनेकों सौदे किये | अब इज़राइल भारत को रूस और फ़्रांस के बाद हथियार निर्यात करने वाला तीसरा सबसे बड़ा देश बन गया है |
और आर्थिक सम्बन्ध रक्षा सौदों से भी कहीं ज़्यादा हैं | मोदी के नजदीकी के तौर पर पहचाने जाने वाले भारतीय व्यापारी अडानी ने इज़राइल के हाइफ़ा पोर्ट को हासिल करने के लिए 1.2 बिलियन डालर का भुगतान किया है | भारत ने भी इज़राइल को निर्यात किये जाने वाले पेट्रोलियम की मात्रा बढ़ा दी है | पत्रकार शुजा असरार लिखते हैं :
सन 2022-23 में भारत का इज़राइल को पेट्रोलियम निर्यात साढ़े तीन गुना बढ़ा और यह 1.6 से बढ़ कर 5.5 बिलियन डालर हो गया | इससे पिछले वर्ष की तुलना में भारत का निर्यात 77% बढ़ा, और दोनों देशों के बीच कुल व्यापार 37% बढ़ गया |
यह तथा अन्य उदहारण दर्शाते हैं कि भारत के इज़राइल की तरफ झुकाव की एकमात्र धुरी मुस्लिम विरोध ही नहीं है बल्कि इसके कुछ पूंजीवादी तर्क भी हैं |
वैश्विक साम्राज्यवाद विरोध और भारत का कामगार वर्ग
भारत सरकार हमेशा से इज़राइल के इतना करीब नहीं थी | दी गार्जियन की पत्रकार हान्ना एलिस ने हमें याद दिलाया है, वे लिखती हैं :
भारत वह पहला गैर अरब देश था जिसने 1970 के दशक में फिलिस्तीन मुक्ति संगठन को फिलिस्तीन के जायज़ प्रतिनिधि के रूप में मान्यता दी थी, अस्सी के दशक में कूटनीतिक दर्ज़ा दिया तथा लम्बे समय से संघर्ष कर रहे नेता यासर अराफ़ात को अनेकों बार भारत में आने का निमन्त्रण दिया तथा संयुक्त राष्ट्र संघ में हमेशा फिलिस्तीन का साथ दिया | जब फिलिस्तीन मुक्ति संगठन ने इज़राइल के साथ बातचीत शुरू करी तथा अमेरिका ने दबाव बनाना शुरू किया तब भारत ने 1992 में इज़राइल के साथ कूटनीतिक सम्बन्ध स्थापित किये |
गुट निरपेक्ष आन्दोलन के दौरान भारत ने लगातार फिलिस्तीन के प्रति अपना खुला समर्थन प्रदर्शित किया | गांधी, जो किसी भी तरह रैडिकल नहीं थे, ने खुद इज़राइली कब्जे और फिलिस्तीन के स्थानीय निवासियों के निष्कासन को “मानवता के विरुद्ध अपराध” माना था | उन्होंने इसमें 1946 में अपने वक्तव्य में आगे कहा ‘इस बात को मानते हुए कि विश्व में यहूदी क्रूर और गलती पर हैं’ गाँधी ने कहा था इन्होनें पहले अमेरिका और ब्रिटेन की मदद से और अब नंगे आतंक के दम पर खुद को फिलिस्तीन पर थोपने की की गंभीर गलती करी है | फिलिस्तीन के लिए गाँधी का समर्थन इज़राइल को विस्तारवादी मानने और फ़िलिस्तीनियों के संघर्ष को आज़ादी की लड़ाई मानने से निकला था क्योंकि भारतीय उपमहाद्वीप भी उसी तरह की परिस्थियों के अनुभव से गुज़र चूका था | भारत और फिलिस्तीन दोनों का शत्रु साम्राज्यवाद था जो इनके बीच एक स्वाभाविक एकता को बढ़ावा दे रहा था |
लेकिन यह भारत का कामगार वर्ग और कमेरे वर्ग के आन्दोलन थे जिन्होनें दुनिया भर के आंदोलनों से एकता स्थापित की | भारत के कमेरे वर्ग ने ना सिर्फ अपने स्वतंत्रता संघर्ष में बहादुरी की भूमिका निभाई बल्कि – 1946 के नौसेना विद्रोह से लगाकर तेभागा किसान विद्रोह या साम्यवादी नेतृत्व में होने वाले तेलंगाना विद्रोह तक ही नहीं – बल्कि दुनिया भर के मुक्ति आंदोलनों का पूरे जोश से समर्थन किया | भारत की वामपंथी कम्युनिस्ट पार्टियों के समर्थन से उन्होंने साम्राज्यवाद विरोध और अन्तरराष्ट्रीयतावाद दोनों सिद्धांतों को आगे बढ़ाया | इनकी एकजुटता दक्षिण अफ्रीका के रंगभेद विरोधी आन्दोलन से लगाकर मकबूज़ा फिलिस्तीन और विएतनाम तक फ़ैल गई | जब विएतनाम युद्ध शुरू हुआ तब वामपंथी पार्टियों से जुड़े छात्रों और युवाओं ने सड़कों पर उतर कर ज़ोरदार नारे लगाए जिनमें ‘ मेरा नाम, तेरा नाम, विएतनाम, विएतनाम’ शामिल थे | 1968 में विश्व मौद्रिक संगठन (IMF) के अध्यक्ष रोबर्ट एस मैक नमारा के कोलकाता आगमन पर छात्रों तथा युवाओं ने ज़ोरदार प्रदर्शन करके उनके जहाज को शहर में उतरने से रोक दिया | मैक नमारा को एक हेलीकाप्टर प्रवास के बाद वापिस जाने के लिए मजबूर होना पड़ा क्योंकि विश्व मौद्रिक संगठन (IMF) पर आरोप था कि वह विएतनाम के लोगों के खिलाफ जैव हथियारों के इस्तेमाल में शामिल है जिसमें हजारों नागरिकों की जान गई है; इसे लेकर एक आक्रोश पूर्ण विरोध का आयोजन किया गया था | जब पश्चिम बंगाल में साम्यवादी पार्टी सीपीएम सत्ता में आई तो उसने हेरिंग्टन स्ट्रीट जिस पर अमेरिकी काउंसिलेट का कार्यालय था उसका नाम बदल कर हो ची मिन सरणी रख दिया | इस कदम ने इस बात को दूर तक फैला दिया कि भारत का वाम अमेरिकी साम्राज्यवाद को ज़िम्मेदार मानने के लिए दृढ़ है |
जिस कोलकता शहर ने मैक नमारा का प्रवेश रोक दिया था, उसने फिलिस्तीन मुक्ति संगठन PLO के नेता, यासर अराफात, का गर्मजोशी से बाहें फैला कर स्वागत किया | अपने भारत दौरे के दौरान, 28 मार्च 1990 को, यासर अराफात कोलकता आये, जहां नेताजी सुभाष स्टेडियम में भारी भीड़ को उन्होंने आकर्षित किया | अलग अलग पृष्ठभूमि के दस हज़ार से ज़्यादा लोगों ने उत्सुकतापूर्वक फिलिस्तीनी जनता की हिम्मत और डटे रहने के प्रतीक नेता का स्वागत किया | अपनी पार्टी के दूसरे नेताओं के साथ पश्चिम बंगाल के मुख्य मंत्री ज्योति बसु ने फिलस्तीनी नेता का स्वागत किया | इस ऐतिहासिक क्षण को संजोने वाले एक चित्र में, अपने ख़ाकी कपड़ों पोशाक और केफियाह पहने हुए, यासर अराफ़ात ने ज्योति बसु का हाथ पकड़ कर आकाश की तरफ तान कर जोशीली भीड़ के साथ मिलकर नारे लगाए “फिलिस्तीन को आज़ाद करो” तथा “इन्कलाब जिंदाबाद” |यह चित्र इस बात का दस्तावेज है कि वास्तविक साम्राज्यवाद विरोधी अन्तर्राष्ट्रीय एकजुटता क्या होती है |
उसी साल नेल्सन मंडेला ने कोलकता का दौरा किया जहां उनका इडेन गार्डन में जोशीला स्वागत किया गया | हजारों लोगों ने उनका स्वागत ऐसे किया जैसे वह उनके बीच से ही एक हों | तीसरी दुनिया का यह महान नेता ने पश्चिम बंगाल के मुख्य मंत्री के साथ हाथों में हाथ डाल कर, भीड़ के साथ मिलकर गीत गाया, “माई बूया अफ्रीका” यानी “मुझे अफ्रीका प्यारा है” | मंडेला ने खुद गीत गाने में शामिल होकर भीड़ को प्रेरित किया कि वे भी साथ में गायें – इसने एक ऐतिहासिक क्षण का निर्माण किया | जब “माई बूया अफ्रीका” ज़ोर से गूंजा तब मंडेला जनता के साथ मिलकर नृत्य करने लगे |
नज़दीक के अतीत की बात करें तो 30 दिसम्बर 2006 को कम्युनिस्ट शासित प्रदेश केरल में पश्चिम द्वारा आतंकवाद के विरुद्ध फर्जी युद्ध के नाम पर सद्दाम हुसैन की फांसी के खिलाफ़ तीन घंटे की हड़ताल आयोजित करी थी | हजारों लोग केरल के कोज़ीकोड समुन्द्र तट पर जमा हुए | यहाँ तक कि जो मछुआरे समुन्दर में मछलियाँ पकड़ने गए थे, वे भी इसमें शामिल होने के लिए लौट कर आ गए थे | पिछले हफ्ते केरल के मुख्यमंत्री, पीनारई विजयन, ने एक फिलिस्तीन समर्थक रैली का उद्घाटन किया जिसमें, अपनी अलग अलग राजनैतिक प्रतिबद्धताओं वाले, पचास हज़ार से ज्यादा लोग शामिल थे | यह गैर भाजपा पार्टियों का साम्राज्यवाद विरोधी, और मोदी की इज़राइल समर्थक हिन्दुत्ववादी राज, की नीतियों का लगातार व्यापक विरोध का प्रदर्शन था |
केरल के लोगों की बड़ी आबादी पश्चिम एशिया में प्रवासी रूप में निवास करती है | केरल के लोगों के जीवन में फिलिस्तीन के साथ एकजुटता उनके रोज़मर्रा के जीवन में प्रतिबिम्बित होती है | केरल में बड़ी तादात में प्रवासी मजदूर रहते हैं, जिन्होनें खाड़ी के देशों को पूँजी के साम्राज्य में बदला है | इन देशों का विकास का श्रेय मलयाली और दक्षिणी एशियाई मजदूरों को जाता है , जिहोनें रेगिस्तानों को दिरहम में बदल दिया | इस एकजुटता का सशक्त उदहारण कालीकट निवासी पीवी मोहम्मद ने पेश किया है – उन्होंने अपने बड़े बेटे का नाम यासर अराफ़ात रखा है, तथा अपने घर को फिलिस्तीन नाम दिया है | केरल यातायात कर्मचारी यूनियन के सदस्य, मोहम्मद, प्रवासियों के लिए जन्नत निर्माण करने के जीवंत उदाहरण हैं | आज़ादी के लिए लड़ने वाले लोगों को सम्मान देने के लिए, इन्होनें अपने दुसरे बेटे का नाम आज़ाद रखा है |
नदी से लगाकर समन्दर तक …
भारतीय उपमहाद्वीप के लोगों ने बंटवारे के समय बड़े पैमाने पर विस्थापन देखा है, इसलिए यहाँ के लोग किसी के अपनी ज़मीन से बेवतन होने का दर्द और गुस्से को समझते हैं | फिलिस्तीनी लोगों की तरह, भारत के हाशिये की आबादी को भी ऐसे निजाम से दो दो हाथ करने पड़ते हैं जो उनका खात्मा चाहती है | जिनके पास सत्ता और विशेषाधिकार हैं और जिनके पास कुछ भी नहीं है, उनके बीच के इस नग्न संघर्ष में भारत के आम लोग हर एक फिलिस्तीनी के साथ हैं |
वामपंथी पार्टियों और मजदूर यूनियनों द्वारा एकजुटता रैलियों के साथ साथ सारे देश में छोटे छोटे प्रदर्शनों का आयोजन किया जा रहा है | यह सब भारतीय राज्य द्वारा दी जा रही धमकियों और डराने की कार्यवाहियों के बावजूद हो रहा है |स्टूडेंट फेडरेशन ऑफ़ इंडिया के सदस्यों को इज़राइली दूतावास के बाहर प्रदर्शन करने की वजह से दिल्ली में हिरासत में लिया गया | अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी के दो छात्रों को फिलिस्तीन के समर्थन में जनता को एकत्रित करने की वजह से हिरासत में लिया गया | कोलकता में पुलिस ने क्रिकेट वर्ल्ड कप मैच के दौरान फिलिस्तीन का झंडा फहराने के आरोप में दो मुसलमान नौजवानों को हिरासत में लिया | रोचक तथ्य यह है कि जो लोग फिलिस्तीन के समर्थक हैं वह मोदी के नव उदारवादी कृषि कानूनों का विरोध भी करते हैं, जिसने इनकी हार में योगदान दिया | जिन छात्रों ने नागरिकता कानून संशोधन के विरुद्ध आन्दोलन में भाग लिया था, वही अब फिलिस्तीनी बच्चों के पक्ष में नारे लगा रहे हैं | एक सत्तावादी सरकार द्वारा रोज़ाना पैदा की जा रही चुनौतियों के बावजूद, छात्र और कामगार वर्ग पूंजीवादी शोषण और अल्पसंख्यकों को सताए जाने के देश के भीतर के मुद्दों को देश के बाहर चल रहे साम्राज्यवाद विरोधी संघर्ष से जोड़ रहा है, जिससे अंतर्राष्ट्रीयतावाद की वास्तविक तस्वीर का निर्माण हो रहा है |
हाल ही में, एक विडिओ वायरल हुआ जिसमें एक फिलिस्तीनी मां अपने दो छोटे बच्चों को बच्चा गाडी में बिठाकर गाडी खींचते हुए जा रही है | यह तस्वीर ठीक उस भारतीय घटना की याद दिलाती है जब महामारी के दौरान, प्रवासी महिला मजदूर अपने घर लौटने की कोशिश में, अपने पहिये लगे संदूक पर, अपने सोते हुए बच्चे को खींचती हुई सडक के किनारे किनारे जा रही थी | यह माएं, जो विस्थापित की जा रही हैं और एक अनिश्चित ज़िन्दगी का सफर शुरू कर रही हैं, बता रही हैं कि दुनिया को शोषण और शत्रुता के आधार पर बनाया गया है | उनके थके लेकिन दृढ़ कदम उम्मीद का प्रतीक हैं | एक और वायरल विडिओ, जिसमें एक फिलिस्तीनी बच्चा अपनी पालतू बिल्ली को फटे हुए स्वेटर में लपेट रहा है, इसे और दृढ़ करता है – इनका अटल विश्वास जीतेगा, जिनके पास अपनी जंजीरों को खोने के सिवाय और कुछ भी नहीं है | यह कड़ियाँ भारत और फिलिस्तीन की जनता को एक साथ जोडती हैं, एक दिन यह आज़ाद होंगे | साम्राज्यवाद, पूंजीवाद शोषण, तथा नस्ली साम्प्रदायिक अंधराष्ट्रवाद के विरुद्ध संघर्ष चलता रहना चाहिए | नदी से समंदर तक, फिलिस्तीन आज़ाद ज़रूर होगा |
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दिप्सिता धर स्टूडेंट फेडरेशन ऑफ़ इंडिया की जनरल सेक्रेटरी हैं | उन्होंने 2021 में सीपीआई एम के टिकिट पर पश्चिम बंगाल विधान सभा के लिए चुनाव लड़ा था |
यह लेख मूल रूप से 27 नवंबर, 2023 को प्रकाशित हुआ था | हिंदी में अनुवाद हिमांशु कुमार द्वारा |